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विश्व हिंदी दिवस पर साहित्य अकादेमी द्वारा प्रवासी हिंदी साहित्यकार सम्मिलन का आयोजन

RNE Network

साहित्य अकादेमी ने आज विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर प्रवासी हिंदी साहित्यकार सम्मिलन का आयोजन किया। ध्यातव्य है कि यह विश्व हिंदी सम्मेलन का स्वर्ण जयंती वर्ष है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन 10 जनवरी 1975 को नागपुर (महाराष्ट्र) में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था। सम्मिलन में ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, सिंगापुर, म्यांमार, हॉलैंड, दक्षिण कोरिया के 13 प्रवासी हिंदी साहित्यकारों का अभिनंदन किया गया। सम्मिलन की अध्यक्षता ब्रिटेन से पधारी वरिष्ठ प्रवासी लेखिका दिव्या माथुर ने किया। सम्मिलन के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी का स्वागत अंगवस्त्रम् भेंट करके किया। अपने स्वागत भाषण में उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य की विविधता अब किसी से छुपी नहीं है। यह साहित्य अपनी यादों से जुड़े साहित्य का ऐसा समुच्चय है, जिसने अपनी पहचान बना ली है।

उन्होंने प्रवासी लेखकों के लिए अकादेमी द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में भी बताया। वैश्विक हिंदी परिवार के अनिल जोशी ने सभी प्रवासी साहित्यकारों का परिचय देते हुए विश्व हिंदी दिवस के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि साहित्य अकादेमी का यह मंच प्रवासी भारतीय लेखकों से संवाद और प्रकाशन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण मंच है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में दिव्या माथुर ने कहा कि अब हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के लिए अन्य अनेक देशों में इसके प्रचार-प्रसार की अनेक संभावनाओं को देखना होगा।

सम्मिलन में पद्मेश गुप्त ने ब्रिटेन, अनिता कपूर ने अमेरिका, तोमियो मिजोकामी ने जापान, आराधना श्रीवास्तव ने सिंगापुर, चिंतामणि वर्मा ने म्यांमार, रामा तक्षक ने हॉलैंड और सृजन कुमार ने दक्षिण कोरिया में हिंदी की वर्तमान स्थिति और प्रवासी लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीं। भारत से वरिष्ठ हिंदी सेवी नारायण कुमार ने हिंदी की वैश्विक पहचान के समक्ष आसन्न चुनौतियों पर बात की। कार्यक्रम में दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार से जुड़े अनेक लेखकों ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।